न्यायिक सक्रियता के साथ न्यायिक संयम आवश्यक-न्यायमूर्ति शर्मा
उज्जैन। न्यायिक सक्रियता का उद्देश्य न्यायपालिका को सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए सशक्त बनाना है। यदि न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप करती है तो ऐसी स्थिति में न्यायिक सक्रियता के साथ न्यायिक संयम आवश्यक हो जाता है। यह समंंवय ही न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता और संतुलन सुनिश्चित करता है। उक्त विचार पूर्व प्रमुख लोकायुक्त न्यायमूर्ति टीपी शर्मा ने अभा सद्भावना व्याख्यानमाला में व्यक्त किए। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि ईश्वर के बाद न्याय का सबसे पवित्र कार्य न्यायाधीश करता है। एक न्यायाधीश के लिए यह आवश्यक है कि वह पूरी तरह निष्पक्ष, ईमानदार और किसी भी प्रकार के बाहरी दबाव से मुक्त हो। समारोह की अध्यक्षता करते हुए पूर्व न्यायधीश न्यायमूर्ति आलोक वर्मां ने कहा कि न्याय व्यवस्था का मूल उद्देश्य पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाना है। कल 26 नवंबर को व्याख्यानमाला में प्रमुख वक्ता डॉ .सच्चिदानंद जोशी होगे। विषय-व्यक्तित्व विकास और मानसिक स्वास्थ संतुलन में कलाओं का योगदान है। अध्यक्षता शरद शर्मा करेंगे।