साहित्य शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि समाज में क्रांति की मशाल है-वाजपेयी
उज्जैन। साहित्य केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि समाज में क्रांति लाने की मशाल है। अच्छा साहित्य हमारे समाज की सोच और संस्कारों को भी आकार देता है। हमें चाहिए कि हम लोक साहित्य से जोड़ते हुए नैतिक मूल्यों को युवाओं तक पहुंचाएं। आज हजारों चैनल्स और कवि सम्मेलनों की बाढ़ के बीच भी स्तरीय साहित्य की खोज की जा रही है। उक्त विचार पूर्व उप महानिदेशक आकाशवाणी लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, ने भारतीय ज्ञानपीठ में स्व. कृष्ण मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ की प्रेरणा एवं पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल ‘सुमन’ की स्मृति में अभा सद्भावना व्याख्यानमाला में प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किए। साहित्य के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन की राह विषय पर वाजपेयी ने कहा कि इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है जब हमने देखा कि साहित्य ने डाकुओं का हृदय परिवर्तन किया। उन्हें सुधारा। नारियों को सशक्त बनाया और भेदभाव वाले कानूनों में बदलाव के लिए आधार तैयार किया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलगुरू डॉ. बालकृष्ण शर्मां, ने कहा कि कवि या साहित्यकार का संसार एक ऐसा संसार है जो लौकिक होते हुए भी अलौकिक है। साहित्यकार एक ऐसे लोक की रचना करता है, जो उसकी इच्छा अनुसार परिवर्तित हो सकता है। व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्थान की शिक्षिकाओं ने सद्भावना गीतों की प्रस्तुति दी। वरिष्ठ शिक्षाविद दिवाकर नातु, संस्थान प्रमुख युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ, अमृता कुलश्रेष्ठ सहित संस्थान के पदाधिकारियों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कवि कुलगुरु डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन और कर्मयोगी स्व. कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ के प्रति सूतांजलि अर्पित की।व्याख्यानमाला को सुनने के लिए वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी प्रेम नारायण नागर, उमानंद जी महाराज, हरदयाल सिंह ठाकुर, लाखन सिंह असावाद, संतोष सुपेकर, महेंद्र शर्मा, सोनू गेहलोत, डॉ दिनेश जैन, पदम जैन, श्रीकृष्ण जोशी, डॉ शैलेंद्र पाराशर, डॉ सुनीता श्रीवास्तव, दिनेश श्रीवास्तव, निरंजन श्रीवास्तव सहित विभिन्न पत्रकारगण, शिक्षकजन एवं बौद्धिकजन उपस्थित थे। 25 नवंबर को व्याख्यानमाला में न्यायमूर्ति टीपी शर्मा का व्याख्यान होगा व अध्यक्षता न्यायमूर्ति आलोक वर्मा करेंगे।