उज्जैन। सबसे पहले हमने क्षमा धर्म को धारण किया। दूसरे दिन मान कषाय को जीतने का प्रयास किया। क्रोध को तो व्यक्ति जल्दी जीत लेता है, लेकिन मान को जीतना बहुत कठिन होता है। यह बात पर्यूषण के तीसरे दिन आर्यिका दुर्लभमती माताजी ने पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर फ्रीगंजड में कहे। उन्होने कहा आज तीसरा दिन उत्तम आर्जव धर्म का है। मन वचन काया की सरलता का नाम आर्जव धर्म हैं। मन, वचन, काया तीनों इतने सरल हैं कि मानो जो चीज मन में हैं वो इतनी भली हैं, सरल हैं कि उसको वाणी से कहने में हमें कोई शर्म नही लगती। हमें सरल होना है, सीधा होना है। आज तक हम जो चाल चल रहे हैं उस चाल को बदलना है। आर्यिका दुर्लभमती माताजी ने अपने प्रवचन में कहा कि सच्चा श्रावक चलते-फिरते उठते बैठते हमेशा निर्ग्रंथ दशा धारण करने का भाव रखता है। विद्या कुंभ चतुर्मास समिति ने बताया माताजी के प्रवचन के पूर्व समाज के युवा बालक बालिकाएं तत्वार्थसूत्रजी का वाचन करते हैं।

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