कलाएं सिर्फ मनोरंजन नहीं-डॉ. जोशी

उज्जैन। भारत में कला का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आत्मरंजन और ईश्वर आराधना रहा है। सूर्योदय की पहली किरण के साथ प्रकृति जो दिव्य दृश्य प्रस्तुत करती है, उसे आज तक कोई चित्रकार सजीव नहीं कर पाया है। उक्त विचार डॉ.सच्चिदानंद जोशी ने अभा सद्भावना व्याख्यानमाला के समापन दिवस पर प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किए। डॉ. जोशी ने कहा कि  यह जीवन तनाव, प्रतिस्पर्धा और अनावश्यक होड़ से भरा हुआ है। परिवार के बीच रहते समय हम प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। अनावश्यक सुविधाओं के सुख के लिए हमने बहुत सारे मानसिक दुख खरीद लिए है। अध्यक्षता करते हुए शरद शर्मा  ने कहा कि कलाएं तर्कशक्ति और स्मरण शक्ति बढाती है। कला के बिना जीवन पशु के समान होता है। कला हमारे लिए आराधना भी है, प्रेरणा भी है, तपस्या भी है, साधना भी है। और आनंद भी। यह हमारे चरित्र को अभिव्यक्त करती है।आरंभ में संस्थान की शिक्षिकाओं ने सद्भावना गीतों की प्रस्तुति दी। वरिष्ठ शिक्षाविद दिवाकर नातु,  संस्थान प्रमुख युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ, अमृता कुलश्रेष्ठ सहित संस्थान के पदाधिकारियों ने महात्मा गांधी,  डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन और स्व. कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ के प्रति सूतांजलि अर्पित की। वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी प्रेम नारायण नागर, डॉ.जफर महमूद, खुशहाल सिंह वाधवा, डॉ.रफीक नागोरी, अशोक भाटी,  पुष्कर बाहिती, राधा साहू, किरण तिवारी आदि सहित विभिन्न पत्रकारगण, शिक्षकजन एवं बौद्धिकजन उपस्थित थे। संचालन डॉ. भूमिजा सक्सेना ने किया।

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