उज्जैन। राष्ट्रीय स्तर पर रंगकर्म के आधार स्तंभ रहे प्रो. प्रभातकुमार भट्टाचार्य का देहावसान हो गया। प्रो. भट्टाचार्य को राष्ट्रपति ने 2006 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिया था। डॉ. हरीशकुमार सिंह ने बताया कि उन्होने सांदीपनी कला, वाणिज्य एवं विधि स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना साथी प्राध्यापकों के साथ की। उन्होने मध्यप्रदेश नाटक लोक कला अकादमी की स्थापना की। विक्रम विश्वविध्यालय में नए विद्यार्थी कल्याण विभाग की शुरुआत की। साक्षरता को बढाने के लिए विश्वविद्यालय में ही प्रौढ़-सतत शिक्षा केंद्र खोला। उनके तीन उपन्यास मगरमुहा, झील का नाम सागर है और रौशनी की चारदीवारी प्रकाशित हुए। दो खंड काव्य लौट आओ मैना और दरख्त तवारीखी सामने आए। कालिदास , भवभूति, शूद्रक, भास् के संस्कृत नाटकों का रूपांतरण और मंचन किया। कालिदास अकादमी के वे 1995 में निदेशक बने। 2023 के विक्रमोत्सव में नाटक कर्णभार का निर्देशन किया। बांग्ला भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य में उन्होने पहचान बनाई। शिक्षा ,साहित्य और रंगकर्म के शिखर पुरुष, प्रो. प्रभात भट्टाचार्य को नमन है।