उज्जैन। विश्व को परिवार की अवधारणा देने का काम भारत ने किया। जहां-जहां परिवार विघटित हो रहे हैं वहां का समाज नष्ट हो रहा है। सनातन बचा रहा तो विश्व की सभ्यता बची रहेगी। वरिष्ठ नागरिकों की जिम्मेदारी है कि वे परिवार को पतन से बचाए। पुत्र-पौत्र यदि अनाचार करते हैं, तो उनको रोके। आज भौतिक दूरी कोई मायने नहीं रखती है, इसलिए कुटुंब को एक साथ मिलकर वर्ष में एक बार कम से कम साथ बैठना चाहिए. इससे परिवार सूत्र में बंधा रहता है। यह बात पूर्व संभाग आयुक्त एवं पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त ने वरिष्ठजन सम्मान एवं संवाद समारोह में कही। मुख्य अतिथि डॉ. बालकृष्ण शर्मा थे व अध्यक्षता डॉ. केदार नारायण जोशी ने की। प्रकाश व्यास ने बताया कि जीवन उद्घोष संस्था पिछले 10 साल से वरिष्ठ जन सम्मान एवं संवाद कर रही है। जीवनशाला में वरिष्ठजनों का उनके परिवार से सम्मान करवा कर परिवार में समरसता कायम किया जा रहा है। जिन वरिष्ठ जनों का सम्मान किया गया उनमें सुभाष व्यास, करुणा त्रिवेदी, नारायण उपाध्याय, बीके शर्मा, डॉ. संतोष पंड्या, जीवन प्रकाश आर्य, शशि मोहन श्रीवास्तव तथा केदारनाथ जोशी शामिल है। वैजयंती गुप्ता विशिष्ट सम्मान सेवा भारती बालिका छात्रावास की प्रीति तैलंग को दिया गया।
डॉ. संतोष पंड्या ने कहा कि पारिवारिक संबंधों पर संकट आ रहे हैं। कहा कि मुख्य रूप से परिवार के मूल्यों में आ रही गिरावट पर विचारकरना चाहिए। डॉ केदारनाथ शुक्ला ने कहा कि घरों में अग्नि का विभाजन दु:खद है। डॉ शिव चौरसिया ने कहा कि पहले ढाई कमरों के मकान में रहकर भी अतिथियों का आत्मीयता के साथ सम्मान होता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में परिवेश बदल गया है। डॉ. शशि मोहन श्रीवास्तव ने कहा कि पारिवारिक विघटन आज की समस्या है। डॉ.हरिमोहन बुधौलिया ने कहा कि समाज को बचाने में सबको साथ आना होगा। प्रकाश व्यास एवं पंकज मित्तल ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन डॉ पिलकेंद्र अरोरा ने किया एवं आभार उपेंद्र शरण गुप्ता ने माना। डॉ विमल गर्ग, हरिशंकर शर्मा, शिवकुमार दुबे, अप्रतुल शुक्ला, राधेश्याम शर्मा, विवेक चौरसिया आदि मौजूद थे.