उज्जैन। संसार के सभी जीव सुख चाहते हैं। अहिंसा परमो धर्म सुखी होने का सच्चा उपाय हैं, इसलिए पर्युषण जन जन का पर्व हैं। यह बात पर्युषण के छठे दिन पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर फ्रीगंज में आर्यिका दुर्लभमती माताजी एवं श्वेतमती माताजी ने कहते हुए बताया कि यह दस लक्षण धर्म मात्र जैनियों के नहीं हैं, यह जन-जन का धर्म है। कोई भी संप्रदाय का व्यक्ति क्यों ना हो गुस्सा करके पछताता है। जैन हो या अजैन सब पांच पापों को तो कर लेते हैं पर करने के बाद विचार करते हैं कि अब हमारा क्या होगा? जिससे बचने का सच्चा मार्ग जिन धर्म में बताया गया हैं।अहिंसा परमो धर्म जन जन का धर्म हैं। जिस तरह वैध रोगी का रोग जानकर उसका उपचार करते है उसी तरह हमारे जिनेंद्र भगवान हमको दु:ख से बचने का सच्चा उपाय बताते है। धर्म वहीं होता हैं जो इसको धारण करें। जो व्यक्ति उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शोच, सत्य, संयम, तप, त्याग आकिंचन और ब्रह्मचर्य धर्म को स्वीकार कर ले तो वह भी अपने जीवन में मुक्ति का मार्ग पा सकता है। जिसके अन्दर जैनत्व आ जाए वह जैन कहलाने का अधिकारी हैं। जैन संस्कृति की सुरक्षा अगर हम कर लेते हैं तो भारतीय संस्कृति की सुरक्षा अपने आप हो जाएगी। विद्या कुंभ चतुर्मास समिति ने बताया कि उत्तम संयम के दिन सभी जिनालयो में मंडलजी मांडे गए। सभी जिनालयो में जैन समाज ने कारोबार बंद कर भक्ति भाव और श्रद्धा के साथ दर्शन किए।

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