उज्जैन। भादौ के अंतिम सोमवार को निकलने वाली महाकाल की सवारी से जुड़े शाही शब्द को कुछ विद्वानों, आचार्यों व महामंडलेश्वरों ने गुलामी का प्रतीक तथा सामंतवादी बताया था। अभा अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्रपुरी भी साहित्य और व्याकरण का अनुभव नहीं होने के कारण शाही शब्द को हटाने और सवारी का नाम बदलने की बात कह रहे थे। सनातन धर्म के रक्षक और धर्म ध्वज वाहक शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद ने शाही सवारी के विषय में सही जानकारी देकर अपनी विद्वता और धर्मपरायणता की रक्षा की हैं, जिसके लिए महाकाल सेना उन्हें प्रणाम करने के साथ साधुवाद देती हैं।महाकाल सेना के राष्ट्रीय प्रमुख महेश पुजारी और रुपेश मेहता ने कहा कि महाकाल की शाही सवारी को लेकर जिन विद्वान, आचार्य, महामंडलेश्वर और अखाड़ा परिषद अध्यक्ष रवींद्रपुरी ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी, वास्तविकता में उन्हें सनातन धर्म, संस्कृति, वेद, पुराण, व्याकरण हिंदी और संस्कृत के मूल शब्दों का अनुभव ही नहीं है। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि आद्य शंकराचार्य ने सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए वेद, पुराण, उपनिषद और व्याकरण के ज्ञान के आधार पर धर्म की रक्षा की। उन्हीं के ज्ञान के आधार पर सनातन धर्म के फैसले लेने चाहिए। महाकाल सेना महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति से भी मांग करती है कि महाकाल मंदिर की परंपरा और मर्यादा से संबंधित धार्मिक जानकारी के लिए केवल शंकराचार्य और मंदिर के पुजारियों से ही बात की जाए।