उज्जैन। तीर्थंकर का जीव इस जगत में सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम जीव होता हैं। नाराणय, प्रतिनारायण, बलभद्र, कामदेव आदि 63 श्लाका पुरुषों में सबसे सर्वोच्च पद पर आसीन होता हैं। उस पद के धारी जीव का जन्म जिस माता के गर्भ से होता है वह भी एक भवातारी होती हैं।, उसी पद पर आगे आने वाले भवों में श्री कृष्ण, लक्ष्मण और रावण के जीव सुशोभित होगे। रावण ने अपने जीवन काल में पाप किए पर उसने अपने पापों को क्षय करके तीर्थंकर प्रकृति का बंदोबस्त कर लिया, इसलिए हमको अपने जीवन में कभी भी पापी से घृणा नहीं करना चाहिए पाप से करनी चाहिए। उक्त बात श्री अर्हत चक्र मंडल विधान में आर्यिका दुर्लभमती माताजी ने कही। माताजी ने कहा कि हम तो रावण जितने पापी नही है। विद्या कुंभ चतुर्मास सेवा समिति ने बताया रोज सुबह 7 बजे से श्रीजी अभिषेक, शांति धारा के बाद आचार्य श्री विद्या सागर की पूजा की जाती है।इसके बाद विधान की पूजा होती है। विधानाचार्य दमोह से आए अंकित भैया है और संगीतकार अहिंसा जैन जबलपुर हैं।

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