उज्जैन। मराठी को मनाने के लिए भदौ में महाकाल की सवारी निकाली जाती है। मराठी जल्दी बुरा मानते हैं, इसलिए उन्हे जल्दी मनाने के लिए श्रावण के साथ भादौ में भी सवारी निकाली जाती है। महाकाल मंदिर पहले मराठियोम का ही था, बाद में हिन्दी कब्जा हुआ। मराठी आज पछता रहे हैं। लेकिन अब क्या हो सकता है? मराठी को भी परमिशन लेना पड़ती है। मराठी जब चाहे तब नहीं जा सकते।